रण प्रतापी
वक्त कहता है ये झांकी है,
असल सैलाब अभी बाकी है।
कई मुश्किलों से मुक्कमल ये जिंदगी बनाई है,
हमने पत्थर से सांसों की मशाल जलाई है।
ढा सितम जो बर्दाश्त ना हो,
कलेजे तार तार कर,
इतना दुख,
कि दुखों की फिर बात ना हो।
हम लड़ेंगे,
जब तक धैर्य की कोई सांस बाकी है।
ऐ वक्त,
तूने तो कई वक्त देखें होंगे,
ना समझा कि मनुष्य एक रण प्रतापी हैं।”