रज़ा में दिन गुजारिए।
कब तलक करोगे शिकवा यूं ज़िंदगी से
अब तो रजा में इसकी ही दिन गुजारिए
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हूँ कब से यूं खड़ी मैं दिल थाम कर के अपना
अब छोड़ कर गमों को दिल को लगाइए
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हो जाएँगे मुकम्मल जो ख्वाब हैं अधूरे
रातों को अपनी कुछ यूं हम पर गुजारिए
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पलकें बिछा के बैठी राहों में आपकी मैं
अब तो सनम ज़रा सा कुछ मुस्कुराइए
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मंजिल भी दिख रही है तैयार हैं सफर को
अब दो कदम संग मेरे चलकर दिखाइए
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हमने किया है वादा जब साथ निभाने का
एक बार कम से कम तो “निधि” आजमाइए