रचना
कहीं घुम आयें
आओ घूम कहीं आये हम
जगह नई कहीं जाये हम
आसमां से उपर उडते बादल
मखमली सी ओड हम चादर
हम- तुम उनमें खो जाये
दिल- दो, रूह इक हो जाये
मिट्टी को सब सौप, हवाले उनके
बहती धारा, ठण्डा पानी, हम उनके
सज- धज कर घूमें हम
हसीन- वादियों में जाये हम
सर्द- रूत की मीठी गुनगुनी धुप
उगते- सूरज की पहली किरण
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़