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16 Jun 2018 · 1 min read

“रचना मेरी बोलेगी”

“कुछ कहते हैं जब लोग मुझे,
हम अक्सर चुप हो जाते हैं ,
देखा है तूफ़ानों में,जो पेड़ झुक जाते हैं,
तभी सुरक्षित रहते, वरना टूट ही जाते हैं
वक़्त हमारे हक़ में होगा उस रोज़ ही मुहँ खोलेंगे,
मूक रह जायेगी ये दुनिया जिस रोज़ हम बोलेंगे,
मर्यादाओं का पल-पल जो भान हमे करवाते हैं,
कितनी गरिमा है उनकी शब्दों में हम तोलेंगे,
अनुगामी हम उन पाँवों के जो अंगारों पर चलते हैं,
निज स्वाभिमान के रक्षाहित में तूफ़ानों में पलते हैं,
कुल क्या है?खानदान है क्या?
ये ओछी बात नही करते,
निस्वार्थ संग होते हैं,अपनों से घात नही करते,
निज कर्मों पर विश्वास है जो, पर्वत से टकराते हैं,
दो हाथों की औकात है क्या,सबको दिखलाते हैं,
वतने अमन पर संकट हो जब देश उन्हें बुलाता हैं,
तत्पर होते रक्षा में झकझोर हमे जगाते हैं,
भूले जो कर्ज़ वतन का उनको लाज नही आती,
भारत माँ की कानों तक आवाज़ नही आती,
व्यथित हृदय उकसाया जिनका,वो समर में कूद गये,
लाज बचाने को माँ की हर दुश्मन से जूझ गये,
कलम धँसी है पन्नों में अब ये बाहर आएगी,
अंगारों की उठती ज्वाला, हर इक दिल तक जायेगी,
सहज मार्ग को चयनित करना कायरता दिखलाती है,
मौन,विवश लोगो से मुझको मुर्दों की बू आती है,
हार गये जो खुद में खुद को,
मुझे जीत का मन्त्र बताते हैं,
हम जैसे मतवालों को,
पिंजरों का राह दिखाते हैं,
हमे पायेगी अगली पीढ़ी भी,
इतिहास के पन्ने जब खोलेगी,
हम चुप हो जायेंगे गालिब रचना मेरी बोलेगी “

Language: Hindi
534 Views

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