रचना प्रेमी, रचनाकार
रचना प्रेमी, रचनाकार
डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर आरंग अमोदी
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नींद बैरी ह परत नई हे
काकर करत हे अगोरा ।
रात दिन नजर झुलत हे
टुरी रचना अउ मंटोरा।।
लपक लपक आवत रइथे
कलम धराए रचना।
लेखनी सुघ्घर बनय नहीं
त आथे टुरी मंटोरा।।
कक्का लिखत रइबे तभो ले
बब्बा हा छपा जाथे।
झुमर झुमर रइथव फेर मोर
नींद घलो भगा जाथे।।
ए दोनो टुरी के चक्कर मा
मैं पिसावत रइथव।
तेकरे सेती संगवारी तुमन
कवि बन जौ कइथव।।
बड़ मन मोहनी दोनों टुरी
कभु हंसाही कभी रोवाही
नाचत कुदत कोनो बेरा में
सुते नींद मां घलो उठाही।।
मन गदगद हो जाथे मोर
ए दोनो के राहत ले।
कसम घलो खागे हव मैं
नी छोड़व जी राहत ले।।
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