रचना:लोकतंत्र और सियासी लोगों का खेल
किसी को मंदिर, किसी को मस्जिद बना लेने दो।
गरीबों की आह ,उनकी पुकार यूँ ही दब जाने दो।।
कोई मर रहा भुखा उन्हें यूँ ही मर जाने दो।
गर खाकर बचे कुछ उन्हें गोदाम मे यूँ ही सड़ जाने दो।।
सियासी लोगों का ये चालाकी हम सबका फँसाना हैं।
इन्हें सब मालूम कहाँ – कहाँ दंगा करवाना है।।
दो वक्त कि रोटी सोंच पिता को कोई काम दिलवानाहै।
इन्हें क्या?बेटे को राजसिंहासन , बेटी को राजमहल
दिलवाना है।।
जाति, धर्म, भाषा चाहे हो मजहब लड़ाना पर उनकी
यारी घराना है।।
समझो या ना समझो उनका यहीं तो निशाना है।