खून के बदले आजादी
खून के बदले आजादी की,
कीमत सबने चुकाई थी ।
हंसते हुए सूली पे चढ़े,
सीने पर गोली खाई थी ।।
जलियांवाले बाग में देखो,
रक्त की धार बहाई थी ।
बच्चे बूढ़े महिला पुरुष,
सबने ही जान गवाई थी ।।
उनके बलिदानों के दम पर,
हमने आजादी पाई थी ।।
आजाद हिन्द की सेना में,
तब आई नई तरुणाई थी ।
गोरों छोड़ो देश हमारा,
सबने आवाज लगाई थी,
जय हिन्द के नारों से,
संपूर्ण धरा थर्रायी थी ।।
गुमनाम हुए शहीद कितने,
ये सूची न बन पाई थी ।
कितने काला पानी गए,
पर ये रुकी नहीं लड़ाई थी,
कफन बांध कर सर पे अपने,
आजादी की अलख जगाई थी ।।
तोपें भी खामोश हो गई,
पर क्रांति फिर भी रुकी नहीं ।
ये ज्वाला स्वतंत्रता की थी,
मर कर के भी बुझी नही ।।
और भी प्रज्वलित हो उठी,
तब गोरों की शामत आई थी ।।
अनूप अंबर, फर्रुखाबाद