रख आँसुओं पे अपनी ये आँखें निगहबानी
रख आँसुओं पे अपनी ये आँखें निगहबानी
करने न इन्हें देती अपनी कोई मनमानी
मुस्कान में चाहे थे हमने तो छुपाने गम
पढ़ लेते मगर चेहरा, हैं लोग बड़े ज्ञानी
बस अपनी ही कहते हैं सुनते न किसी की जो
बेकार उन्हें कोई फिर बात है समझानी
हम जीत कहें अपनी या हार इसे बोलो
आती है उन्हें हमसे हर बात ही मनवानी
नफरत ही भड़कती है नफरत के शरारों से
हम सबको मुहब्बत से ये आग है बुझवानी
क्या लोग कहेंगे ये, परवाह न हम करते
बचपन को जी लेते हैं कर हरकतें बचकानी
विश्वास बड़ा देखो है’अर्चना’ को खुद पर
करके ही वो रहती है जो मन में यहाँ ठानी
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04-11-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद