रक्षा का बंधन
रक्षा का बंधन
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राखी का त्योहार आ गया,
बहनों में उल्लास छा गया।
राखी के पावन पर्व पर
बांधती हैं सब बहनें अपने
भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र
और लेती हैं वचन अपनी रक्षा का
राखी के धागों में समेट अपना
ढेर सारा स्नेह, लाड़ प्यार दुलार
सजाती भाई के माथे पर रोली कुमकुम
और छिड़कती हैं उसके सिर पर हल्दी अक्षत
उतारती हैं आरती, करती हैं दुआएं
उसके अच्छे स्वास्थ्य, सुख , समृद्धि की
और चाहती हैं उसका प्यार दुलार आशीर्वाद
साथ ही जीवन भर उससे मायके का अधिकार।
धन्य हो जाते हैं तब भाई भी
सजाती है उसकी कलाई पर
जब उसकी बहनें राखी
न चाहकर भी मन भावुक हो जाता है,
बहन छोटी हो या हो बड़ी
भाई उसके कदमों में झुक ही जाता है,
बहन का हाथ स्वमेव आशीर्वाद के लिए
भाई के सिर पर चला ही जाता है,
तब भाई सचमुच धन्य हो जाता है।
हर बहन भाई को रक्षाबंधन पर्व का
बेसब्री से सदा इंतजार रहता है,
रिश्ते खून के हों या भावनाओं के
भला क्या फर्क पड़ता है?
राखी के धागों में समाया होता है
अपने भाई पर दुनिया में सबसे ज्यादा,
बहन का विश्वास भरा अधिकार,
और भाई को होता है अहसास
बहन के प्रति अपनी जिम्मेदारी और
उसके आजीवन सुरक्षा के कर्तव्य का।
ये रिश्ता सचमुच ही अनमोल होता है
खट्टे-मीठे अनुभवों, नोक-झोंक
अक्सर होने वाले तू तू मैं मैं के बाद भी
हर भाई बहन के लिए
सबसे खास, सबसे पास होता है।
सबसे ज्यादा लाड़ प्यार दुलार आशीर्वाद और
खुद से भी ज्यादा एक दूजे पर विश्वास होता है,
समूची दुनिया में भाई के लिए उसकी बहन और
बहन के लिए उसके भाई से ज्यादा
न कोई भी और खास होता है।
रक्षाबंधन पर्व हर वर्ष इनके लिए
सबसे खास त्योहार होता है
क्योंकि ये दोनों को मिलने के बहाने जो देता है,
बीते दिनों की यादों को
तरोताजा करने और शिकवा शिकायतों संग
सुख दुख साझा करने का खूबसूरत मौका भी देता है।
रक्षा-बंधन शायद उनके रिश्तों को
मजबूत करने के लिए ही आता है।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित