रक्षा करो प्रभु !
रक्षा करो ,
हमारे आंतरिक शत्रुओं से ,
हमारा अभिमान ,क्रोध , ईर्ष्या -द्वेष ,
घृणा ,वैमनस्य इत्यादि ,
जो बढ़ाते है नकारात्मकता ।
रक्षा करो ,
हमारी दृष्टि से ,
जो अपने पराए का भेद करती है ,
इंसान को इंसान से दूर करती है ,
इंसानियत का धर्म भुला बैठी ,
हमारी अज्ञानता।
रक्षा करो ,
हमें हमारी कमजोरियों से ,
जो हमें अकर्मण्य और कृतघ्न ,
धर्मांध बनाती है ।
यह ईश्वर भक्ति नहीं है यह
यह है नास्तिकता ।
रक्षा करो ,
हमें हमारे अकारण डर से ,
जो हमारे आत्मविश्वास को घटाती है ।
सत्य असत्य ,न्याय अन्याय को
परखने का साहस न कर सके जो ,
ऐसी हमारी कायरता।
रक्षा करो ,
हमारी ऐसे अनेक अज्ञात शत्रुओं / शक्तियों से ,
जो हमारे जीवन के लिए खतरा बने रहते हैं,
जिस जीवन को तुमने उपहार स्वरूप दिया ।
जिसके केवल तुम ही हो ,
मालिक और कर्ता – धर्ता ।