रक्षाबंधन का बंधन
राखी है त्योहार अनोखा भाई-बहन का।
स्नेह का प्रेम का और रक्षा के बंधन का।।
एक रेशमी डोर रिश्तों के विश्वास की।
ये एक अटूट बंधन रक्षा के आस की।।
बहनें तो बांधती आई है कलाईयों में।
रखती भी आई है भरोसा भाईयों में।।
काश ! हम भाई ये बंधन निभा पाते।
आज “निर्भया” को कोई छू ना पाते।।
न ही तो कोई बहन बनती द्रौपदी।
ना ही वे भेड़ियों से यूं जाती रौदी।।
आये दिन सहती अत्याचार यहां।
क्यों भाई ना करते प्रतिकार यहां।।
क्यों एक भाई का मरता इंसान।
बन जाता पाशविक, नीच-हैवान।।
जब भी इंसान क्रूर-निर्दयी निकले।
उससे तो ये गिद्ध जानवर भी भले।।
भाईयों अब राखी की सौगंध खालों।
अब गिरती इंसानियत को संभालों।।
कभी जिस देश में बहन की रक्षा को।
दौड़े थे कृष्ण द्रौपदी की प्रतीक्षा को।।
शहर-शहर निर्भया करती चित्कार।
आज भी तो द्रौपदीया रही है पुकार।।
तू कृष्ण भी नही ना ही शक्तिमान।
पर बचाने बहनों-बेटियों का सम्मान।।
तू लड़ेगा जरुर हर जालिम से।
गर तेरे अंदर होगा जिंदा इंसान।।
राखी बंधवा ली शपथ भी ले बांध।
अब हर बहन जिएंगी यहां निर्बाध।।
आज रक्षाबंधन में तेरा यही बंधन।
श्री रक्षा संकल्प श्री रक्षा ही वंदन।।
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रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं!
आज भी हमारी बहन-बेटियों पर आये दिन हो रहे जघन्य अपराधों से द्रवित, सभी भाईयों से रक्षाबंधन के इस पर्व के दिन हमारी बहनों की रक्षा को आगे आने का एक निवेदन। ©जीवनसवारो