रक्त नदियों सा सैनिक बहाते रहे
ग़ज़ल
212 212 212 212
काफ़िया-आते
रफीफ-रहे
रक्त नदियों सा’ सैनिक बहाते रहे।
राष्ट्र हित में सदा जाँ गँवाते रहे।
खा कसम शरहदों पर खड़े आज वो
धूल आतंकियों को चटाते रहे।
मुश्किलों से कभी वो डरे हैं नही
ले तिरंगा कदम वो बढ़ाते रहे।
जान जाए मगर सिर झुकेगा नही
सिर कटाते रहे मुस्कराते रहे।
चैन से जी रहे हैं घरों में सभी
फ़र्ज़ अपना सदा वो निभाते रहे।
युद्ध के क्षेत्र में ना पराजित हुए
शौर्य अपना सदा वो दिखाते रहे।
दे रहे देश पर वीर कुर्बानियाँ
मुल्क की आन को वो बचाते रहे।
वीर के रक्त अभिनव सदा जोश है
सरफ़रोशी सदा गुनगुनाते रहे।
मौलिक एवं स्वरचित
अभिनव मिश्र अदम्य
शाहजहांपुर, उ.प्र.