रक्त एक जैसा
***रक्त एक जैसा***
है रंग रक्त का एक जैसा
फिर क्यों है धर्म के पहरे
एक-दूजे को गले लगालो
किस सोच में तुम हो ठहरे ।
है रव ने बनाया,
हमें एक जैसा
फिर धर्म पे हैं,
क्यों ये झगडे ।।
एक- दूजे से
हाथ मिला लो
किस सोच में
हो तुम ठहरे ।
है धर्म ने हमको बाँटा
छोडो इस धर्म को आओ
एक सुर में ताल मिलाके
भ्रातत्व के गीत को छेडे।।
है रंग रक्त का ————-