“रईस का कुत्ता”
“रईस का कुत्ता”
वो ‘कुत्ता’,कितना खुशनसीब;
जो रहता , रईस के ही करीब;
ये ‘कुत्ता’ होता, कई नाम का;
मिलता ये,लाखों के दाम का;
मगर नहीं ये, किसी काम का;
मालिक के आगे, दुम हिलाये;
उसके तलवे चाटे, ये रोजाना;
बने निज मालिक का दीवाना;
रईस भी , इसी बात पर अड़ा;
रिश्तों से बड़ा, कुत्ता हो खड़ा;
टहलाये,गले में फंदा डालकर;
खुश है वो,एक कुत्ता पालकर;
कुछ रईसजादी,कुत्ते के आदी;
रहते सदा , कुत्ते पर ही फिदा;
हो नहीं सकते,वे कुत्ते से जुदा;
इसको ही, सदा साथ टहलाते;
कुछ इसको,निज साथ सुलाते;
टॉमी,डॉगी,बंटी, बबली,बुलाते;
दूसरे जीव भी,इसे देख शर्माते;
यही,”रईस का कुत्ता”कहलाते।
गैया की यदि, ऐसी सेवा करते;
पालतू कुत्तों पर, ऐसे ना मरते;
होता इनका भी,तभी बेड़ा पार;
जन-जन में होता तभी ही प्यार;
लेकिन यह है, कुत्तों का संसार।
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स्वरचित सह मौलिक;
…….✍️पंकज ‘कर्ण’
…………. कटिहार।।