ठोकरें आज भी मुझे खुद ढूंढ लेती हैं
आपका अनुरोध स्वागत है। यहां एक कविता है जो आपके देश की हवा क
महिला हमारी जननी , महिला हमारी पूरक
खुशी कोई वस्तु नहीं है,जो इसे अलग से बनाई जाए। यह तो आपके कर
पापा का संघर्ष, वीरता का प्रतीक,
*** यार मार ने कसर ना छोड़ी ****
मां मेरे सिर पर झीना सा दुपट्टा दे दो ,
नवंबर की ये ठंडी ठिठरती हुई रातें
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
ಅನಾವಶ್ಯಕವಾಗಿ ಅಳುವುದರಿಂದ ಏನು ಪ್ರಯೋಜನ?
नए साल तुम ऐसे आओ!
गौ नंदिनी डॉ विमला महरिया मौज
How do you want to be loved?
ये जो मीठी सी यादें हैं...
अज़िय्यत-ए-इंतहा में शायद कोई मुस्कुराता नहीं,