నేటి ప్రపంచం
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
ईश्वर नाम रख लेने से, तुम ईश्वर ना हो जाओगे,
शूर शस्त्र के बिना भी शस्त्रहीन नहीं होता।
तारीफों में इतने मगरूर हो गए थे
नये शिल्प में रमेशराज की तेवरी
टूटी – फूटी सड़क रातों रात बन जाती है
मुस्कुराए खिल रहे हैं फूल जब।
रंगों का कोई धर्म नहीं होता होली हमें यही सिखाती है ..
सपनों का ताना बना बुनता जा
जब कोई हो पानी के बिन……….
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ऋषि मगस्तय और थार का रेगिस्तान (पौराणिक कहानी)
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मैं निकल गया तेरी महफिल से
"भरोसे के काबिल कोई कैसे मिले ll
रोटी
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
दुख दें हमें उसूल जो, करें शीघ्र अवसान .
क्यो तू रोता इस नश्वर संसार में ..