रंजिश़
रंजिश़ को रखो दिमाग़ तक दिल तक ना आने दो ।
दिल तक आ गई तो छूटेगी नहीं दाग़ छोड़ जाएगी। जो न मिटेगी वक्त के साथ ग़हराती जाएगी।
ना मिलेगा सुक़ून कभी ज़िदगी में यह हमेशा सोच पर हावी रहेंगी ।
ज़ेहन पर पा़बस्ता सोच को मिटाना मुश्किल नहीं है। पर जो ज़ख्म दिलों पर बनते हैं वो इंतिहा तक मिटते नहीं है।
ज़िदगी में वैसे भी बहुत अल़म है । फिर क्योंकर रंजिश़ों का अल़म पालना।
जिंदगी में बहुत कुछ है करने के लिए ।
फिर क्योंकर जीना उस माहौल में जिसमें बदले की सोच लिये ये जिंदगी दुश़वार हो जाये ।
इंसानी फ़ितरत खुद अपनी तक़दीर लिखती है । फिर क्यों ना सब कुछ भूल कर एक खुश़गवार माहौल में ज़िंदगी बसर की जाये ।
और म़सर्रत के लम्हे ढूँढें जाए।
वरना रंजिश़ों की तप़िश में ज़िंदगी त़बाह करने वाले बहुत देखे हैं ।