रंग
देखिए यह मोहब्बत क्या रंग लाएगी
देखते हैं कब तक कितना तड़फाएगी
आँधियाँ बहा ले जाती है संग सब कुछ
देखते हैं क्या कुछ छोड़ कर भी जाएंगी
दुनियां होती हैं दिल की बहुत ही काली
देखते हैं हमें कब तक यूं ही छलाएगी
जमाने के होते हैं रंग जग में कई हजार
देखते हैं कब किस रंग मे रास आएगी
हासिल नहीं होता मुकम्मल यहाँ जहान
देखते हैं जिन्दगी कुछ हासिल कर पाएगी
शमां पर पंतगे बनते और खत्म हो जाते हैं
देखते है क्या चिन्गारी कुछ पल रह पाएगी
फूल नित्य खिलते हैं और मुरझा जाते हैं
देखते हैं क्या कोई कली सदा खिल पाएगी
चाँद होता हैं बड़ा सुन्दर, शान्त और शालीन
देखते हैं क्या चाँदनी हमें शालीन कर पाएगी
सुखविंद्र सिंह मनसीरत