रंग है कैसा
**रंग है कैसा (ग़ज़ल)**
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ख़िजां का ढंग हैं कैसा।
फ़ना . का रंग है कैसा।
फूल तो खूब हैं खिलते,
फ़िज़ा बदरंग है कैसा।
हुआ घायल नहीं कोई,
छिड़ा यह जंग हैं कैसा।
खिला है चेहरा यूं तो,
दिखे दिल तंग हैं कैसा।
छलावा यार मनसीरत,
नशा क्यों भंग हैं कैसा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)