रंग बसंती जब खिलते हैं
रंग बसंती जब खिलते हैं
नैनों से सपने झरते हैं
कूक रही कुंजन कोयलिया
पान पराग भ्रमर करते हैं
शीत लहर से पा छुटकारा
खिले खिले से मन हँसते हैं
कली महकती हवा बहकती
गीत मधुर कवि मन रचते हैं
दुल्हन रुप धरा धरती ने
पिया मिलन तन मन चलते हैं
वन उपवन आँगन यूँ महके
मन का सारा दुख हरते है
मात !’अर्चना’ पूजन करके
हम अपना मंगल करते हैं
डॉ अर्चना गुप्ता