रंग बदलते बहरूपिये इंसान को शायद यह एहसास बिलकुल भी नहीं होत
रंग बदलते बहरूपिये इंसान को शायद यह एहसास बिलकुल भी नहीं होता है कि उसका असली रंग और रूप तो दुनिया पहले से ही देख चुकी हुई है
उसे तो लगता है कि रंग बदल-बदल कर वो दुनिया को बेवकूफ़ बना रहा है
जबकी अपने नित प्रतिदिन बदलते रंगों के कारण वो दुनिया के समक्ष कबका बेवकूफ़ साबित हो चुका होता है
सीमा वर्मा
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