रंग का मोल
आज भारत और नेपाल में हो रहीं 2 शादियों में एक अनोखा बंधन था।
दिव्यांशी अपने सांवले रंग को लेकर चिंतित रहती थी। सारे जतन करने बाद भी उसका रंग उसकी संतुष्टि लायक नहीं हुआ। दिव्यांशी का मीनिया इस हद तक पहुँच गया था कि वह अवसाद में चली गई। कुछ समय पहले एक नए इलाज के लिए एजेंट को अपना ब्लड ग्रुप, मेडिकल जानकारी देते समय दिव्यांशी के परिवार को ज़्यादा उम्मीद तो नहीं थी पर बच्ची की ज़िद और दिल की तसल्ली के लिए सेठ विभूतिचंद ने यह कदम उठाया।
फिर तुरंत ही पता चला कि दिव्यांशी के ब्लड ग्रुप से मिलती एक गोरी नेपाली लड़की राज़ी हुई है जिसकी पीठ और पेट से खाल निकाल कर दिव्यांशी के चेहरे, गर्दन और कुछ अन्य हिस्सो पर ग्राफ्ट की जा सकती है। नेपाली एजेंट को 2 लाख रुपये देकर, ऑपरेशन द्वारा दिव्यांशी के चेहरे, गर्दन, कंधो और हाथों-पैरों पर नेपाली लड़की की उजली खाल चढ़ा दी गयी। अपने अवसाद, हीनभावना और इस कदम के लिए दिव्यांशी और उसका परिवार आसानी से समाज को दोष दे सकता है और हर सुनने वाला उनकी हाँ में हाँ मिला देगा या ये लोग खुद को खंगाल कर अपना खोखलापन देख सकते हैं।
इस सौदे से बॉर्डर के इस तरफ ख़रीदे आत्मविश्वास से परिपूर्ण दिव्यांशी की शादी हो रही थी और उस तरफ नेपाली एजेंट की लड़की की शादी हो रही थी…और हाँ, अपनी खाल देने वाली नेपाली लड़की को भी 10 हज़ार रुपये मिल गए।
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सपने दिखा कर सपनो का क़त्ल कर दिया,
दुनिया का वास्ता देकर दुनिया ने ठग लिया!
फिर किसी महफ़िल के शौक गिना दो,
रंग का मोल लगा लो,
उजली चमड़ी की बोली लगा दो,
फिर कुतर-कुतर खाल के टुकड़े खा लो,
बचे-खुचे शरीर पर हँसकर एक और गुड़िया का ज़मीर डिगा दो!
तेरा भी कहाँ पाला पड़ गया?
…या तो इनमे शामिल हो जाना,
या फिर कोई सही मुहूर्त देखकर आना…
ये लोग लाश की अंगीठी पर रोटी सेंकते हैं….
और रूह की जगह रंग देखते हैं।
समाप्त!