रंग अलग है
नवगीत
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रंग अलग है ढंग अलग है।
बीत रहे हर पल जीवन के।
बारिश की बूंदाबांदी में,
देखो भीग रही धरती है।
लोगों के तन मन पर भी तो,
खूब छा रही प्रिय मस्ती है।
निखर रहे जल की बूंदों सँग,
रंग अल्पना में आंगन के।
आपस की बातों में उलझे,
बहक रहे हैं लोग देखिए।
प्रीति भरी कुछ मन से निकली,
बातों के शुभ योग देखिए।
भाव स्नेह के छलक रहे जब,
वश में कब रहते यौवन के।
सबका अपनी अपनी डफ़ली,
राग अलग सबका अपना है।
सबकी आंखों में जीवन का,
प्यारा सा सुख का सपना है।
कुदरत की अनबूझ पहेली,
खूब खिला हर वन उपवन है।
रंग अलग है ढंग अलग है।
बीत रहे हर पल जीवन के।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य