रंगों से रंगना सीखो
रंग तो आखिर रंग होते हैं
बदला नहीं इनका स्वरूप।
दौलत की खातिर लोगों ने
धारे हैं भांति-भांति के रूप।
स्वार्थ की स्याह से मलिन हुए
नित मुखौटे पहने नव अनूप।
रिश्तों की दरकार रही ना
‘एकला चलो रे’ जंचता है खूब।
रंगों से रंगना सीखो, बदलना नहीं
होली का यह संदेश है अदभुत।
वैर भाव सब भुलाकर पुराने
‘दुर्गेश’ बनो एक-दूजे के मीत।