रंगों का बस्ता
इस काव्य कला में मन के भाव, कलम की नोंक से व्यक्त होते हैं।
इस नृत्य शास्त्र में बनकर पूजा, ये हर दिशा में अभिव्यक्त होते हैं।
ब्रश, पेंट, कलम, कंठ, व नृत्य ही, कलाकार का जग हो जाता है।
संदेश व भाव तो एक ही रहते, पर उनका रूप अलग हो जाता है।
प्राणी की वाणी से होते हुए, सब भावनाऍं बनाती हैं अपना रस्ता।
हर कोरा कागज़ सजीव लगता है, जब-जब खुले रंगों का बस्ता।
कला एक सतत व कठोर साधना, कोई पलभर का स्वाॅंग नहीं है।
समर्पण ही साधना बन जाए, कला की तो सर्वप्रथम माॅंग यही है।
यदि काव्य व नृत्य की विधाओं का, कहीं हास्यास्पद मंचन होगा।
तो कृपा भी शून्य होने लगेगी, अंततः पवित्र यज्ञ का खंडन होगा।
जिस हृदय में छिपा रहे छल, वो माँ शारदे की कृपा को तरसता।
हर कोरा कागज़ सजीव लगता है, जब-जब खुले रंगों का बस्ता।
कलाकार जिस भाव को रखते, उनके अनुरूप ही सब चित्र बनें।
ब्रश, पैलेट, ट्यूब, स्प्रे और कलर, ये सभी चित्रकार के मित्र बनें।
उकेरे चित्रकारी की ख़ूबियाँ, वो चित्रकार ऐसी तस्वीर बनाता है।
जैसे स्वर्ग में बैठकर ईश्वर, यहाँ हम सभी की तकदीर बनाता है।
समस्त शक्तियों का आशीर्वाद, साधक की कृतियों में है बरसता।
हर कोरा कागज़ सजीव लगता है, जब-जब खुले रंगों का बस्ता।
आज इस चित्रकारी के क्षेत्र में, विभिन्न रंगों का ख़ूब प्रचलन है।
वाटर, ट्यूब, पेंसिल व वैक्स जैसे, रंग की किस्मों का चलन है।
आशा है युग-युगांतर तक, कलाकृतियों का क्षेत्र फलता रहेगा।
समय के हाथ को थामे ही, चित्रकार नित्य पथ पे चलता रहेगा।
कभी गौर करो तो देखना, हर कलाकृति से ईश्वर स्वयं है हँसता।
हर कोरा कागज़ सजीव लगता है, जब-जब खुले रंगों का बस्ता।