रंगीन तबियत।
उम्र हो गई पैंतीस के पार,
बस बड़प्पन आना बाकी है,
समझदारी तो फिर भी आ गई,
बस लड़कपन जाना बाकी है,
रंग बदलती ये ज़िंदगी यहां,
कभी खुशहाल तो कभी ग़मग़ीन है,
हर दौर गुज़र जाता आसानी से,
कि अपनी तबियत ज़रा रंगीन है,
देखे हैं कई ऐसे भी जिनका,
बड़ा ही तंग मिज़ाज है,
डरते वो हमेशा इस बात से,
कि क्या कहता उन्हें समाज है,
जो अपने जीने का थोड़ा सा,
देखें बदल के ढंग,
तो हर ओर मौजूद इस कुदरत का,
दिलकश लगेगा रंग,
अपना तो ख़ैर कहना ही क्या “अंबर”,
कि हर चीज़ ही लगती रंगीन है ,
थोड़ा सा नज़रिया तो बदलिए जनाब,
ये दुनिया बहुत ही हसीन है।
कवि-अंबर श्रीवास्तव