रंगमंच
रंगमंच है जिन्दगी,हम सब इसके पात्र।
डोरी प्रभु के हाथ में,हम कठपुतली मात्र।।
जन्म से मृत्यु तक मनुज,रखता विविध चरित्र।
मात-पिता भाई बहन,कभी बना वो मित्र।।
सबके अपने भाव हैं, अपनी सोच- विचार।
झूठ सत्य के साथ ही,चलता ये संसार।।
निज बल-बुद्धि-विवेक से,उत्तम करें प्रयास।
तभी आपकी जिन्दगी, मधुर-मिठास।।
परदे पीछे दर्द रख,बाहर हँसी- फुहार।।
सबसे मिलना प्रेम से और जताना प्यार।।
जब तक साँसे चल रही, होगें खेल-हजार।
आना-जाना है लगा, धर्म-कर्म आधार।।
जीवन के इस मंच पर,कलाकार हम आप।
जिसका अभिनय श्रेष्ठ हो, वही छोड़ता छाप।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली