रंगभेद
आधुनिक विश्व के हम हैं निवासी
फिर भी रह गए गवार हम
क्योंकि चाँद-मंगल पर पहुंच गए हम
पर रंगों से बीमार है हम।
रंग देखकर मूड बदलते
बदलते अपना व्यवहार है।
काला रंग हमारे लिए
जैसे एक श्राप हैं।
काले-अछूत हमारे लिए
एक जी का जंजाल हैं।
शर्म करों
और बंद करों तुम सब अब
यह काले-गोरें का खेल।
और मिटा दो अपने अंदर से
रंगभेद का मैल।
ऊपर वाले ने हमें
सोच-समझकर बनाया है।
इसीलिए ऐ मेरे भोले इंसान,
कसम खाओ तुम सब आज से
किसी को भी हमें
नीचा नहीं दिखाना है।
और रंगभेद के इस मैल को
मिलकर हमें मिटाना हैं।
– श्रीयांश गुप्ता