रँग यहाँ अपना जमाया है बहुत दिन हमने
रँग यहाँ अपना जमाया है बहुत दिन हमने
राज अपना भी चलाया है बहुत दिन हमने
जश्न खुशियों का मना लेने दो कुछ पल हमको
गम भरा बोझ उठाया है बहुत दिन हमने
जख्म भी बन गया नासूर हमारे दिल का
इसको चुपचाप दबाया है बहुत दिन हमने
हार स्वीकार करें कैसे बताओ हमको
आस का दीप जलाया है बहुत दिन हमने
रेत सा फिसला ये हाथों से तभी समझे हम
वक़्त बेकार गँवाया है बहुत दिन हमने
आज उखड़े हैं कदम ‘अर्चना’ तो क्या गम है
आसमाँ सर पे उठाया है बहुत दिन हमने
09-05-2017
डॉ अर्चना गुप्ता