योद्धा
राष्ट्र रक्षा हेतु नभ पथ पर अरे जो जन गया ।
चूम कर धरती हिमालय से बड़ा वो बन गया ।।
धर्म पथ पर धैर्य धर कर जो सतत चलता रहा,
तपस में जलता रहा जो तुहिन में गलता रहा,
युद्ध में दीवार बन कर, शत्रु पर जो तन गया ।।
घोर झंझावत हिम्मत तोड़ ना पाए कभी,
सामने जिसके कि नतमस्तक हुए दुश्मन सभी,
सिंह सा आगे बढ़ा वो, युद्ध जब जब ठन गया ।।
चीख कर रोईं दिशायें चीख कर नभ रो पड़ा,
चीख कर रोई धरा जिस दिन धरा पर वो पड़ा,
जो “विजय” प्रतिमान था, वो सैन्य संजीवन गया ।।
(स्वरचित – मौलिक – सर्वाधिकार सुरक्षित)
विजय प्रताप शाही
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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