योग्यता का भ्रम!
ना पालो तुम,
यूं योग्यता का भ्रम,
नहीं है कोई किसी से कम,
पहुंचे हो जहां पर तुम,
पहुंच सकते थे वहां पर हम,
जिसे तुम अपनी योग्यता बताते हो,
उसके लिए तुम भी तो,
उसी तरह आजमाए गये हो,
आजमाए गये थे जैसे हम!
ये माना कि नहीं थे हालात मेरे अनुकूल,
पहुंचा था मैं भी तो वहां पर लिए हालात प्रतिकूल,
मेरे हालात ही थे प्रतिकूल ,
और तुम्हारे थे तुम्हारे अनुकूल,
तुम चुन लिए गये,
मैं रह गया,
तुम इतराते हुए निकल गये,
मैं ठिठक कर रह गया!
सोचो जरा,
जो चूके होते तुम थोड़ा,
और मैं चुन लिया गया होता,
मैं खड़ा रहता वहां,
अकड़े हुए बैठे हो तुम जहां,
तुम वहां होते,
मैं भटक रहा हूं जहां,
मैं भी वही सब कुछ कर रहा होता,
जो कुछ कर रहे हो तुम यहां,
क्या कुछ महसूस कर सकते हो,
इस उपेक्षा की पीड़ा को तुम वहां!
कह रहे हो जो तुम आज मुझसे,
कह रहा होता वही मैं तुमसे,
जरा गौर से सोचो,
नहीं है सब कुछ स्थिर यहां,
हम मुसाफिर हैं सभी,
लगा रहेगा आना जाना यहां,
आज तुम हो जहां पर,
कल कोई और बैठा होगा वहां पर,
आज जरूरत है मेरी,
कभी होगी जरुरत तुम्हारी,
आज काम आओगे तुम हमारे
कल काम आएंगे हम तुम्हारे,
किस्से कहानियों के हैं ये नजारे,
वक्त पड़ने पर,
जो काम आ जाए,
खुदाई से वह कम कर नहीं आंके हैं जाते!
तुम्हें किस्मत से जो मिला,
या है फिर तुम्हारी मेहनत का ही सिलसिला,
पर है तो वह सेवा के लिए ही मिला,
तो फिर उसे क्यों बेचते हो भला,
चंद टको के लोभ में,
अपने जमीर को,
हैं कितने वह लोग जो चुका सकते हैं ,
इसकी कीमत को भला!
भटक गए हैं राह आज,
रखते हैं सिर्फ अपनों तक का सिला,
जुटा रहे हैं अंबार वह सुख सुविधाओं का,
कर रहे हैं मनमानी वह जो अपनी,
अपने सुखों के लिए,
छोड़ कर अपने दायित्व बोध को,
लड़ते हैं सिर्फ वह अधिकार ही लिए!
यूं ना पालों तुम भ्रम इतना,
अपनी योग्यता के लिए।
मिला करती हैं जो सुविधाएं,
तुम्हें तुम्हारे काम के लिए,
होता है संग्रह उस सबका,
हम सबके प्रयासों से,
बूंद-बूंद कर बनता है सागर,
नहीं सिर्फ किसी एक के लिए,
बंटता है वह सभी में,
उनकी जरूरत के मुताबिक,
प्रकृति के अनुसार ही,
यही सच है जीवन जीने के लिए,
यही जीवन का सार भी है,
ना पालो तुम भ्रम इतना,
अपनी योग्यता के लिए।