योग(जोड़) और चिपकना
योग, योग का अर्थ होता है जुड़ना अर्थात मिलना। किसी भी वस्तु या विचार में जुड़ने के लिए उसी वस्तु या विचार के जैसा होना आवश्यक है अन्यथा योग नहीं हो सकता, जोड़ नहीं हो सकता। क्योंकि दो विपरीत स्वभाव वाली वस्तु या विचार आपस में जुड़ ही नहीं सकते। जैसे हवा में जुड़ने के लिए हवा जैसा होना पड़ेगा, पानी में जुड़ने के लिए पानी जैसा तरल होना पड़ेगा और ठोस में जुड़ने के लिए ठोस जैसा होना पड़ेगा, इसी को जोड़ कहते हैं या योग कहते हैं। वाकी का जितना सब है वह जोड़ नहीं बल्कि चिपकना है।
जीवन में जोड़ या योग हर स्तर पर जरूरी है फिर चाहे समाज हो, परिवार हो, रिश्ते हों, देश हो या जाति। किंतु इसके विपरीत वर्तमान समय में हम जुड़ नहीं रहे बल्कि चिपक रहे हैं। जैसे हम अपने समाज से जुड़ते नहीं बल्कि चिपकते हैं इसलिए जैसे ही समाज से स्वार्थ समाप्त होता है अर्थात चिपकने वाला गोंद कम होता है हम एक दूसरे से छूट जाते हैं। इस तरह जहाँ चिपकने के लिए गोंद रूपी स्वार्थ जरूरी है वहीं योग या जोड़ के लिए समानता हर स्तर पर हर विमा पर जरूरी है। उदाहरण के रूप में समझें तो संख्या 1 को किसी भी अन्य संख्या से ही जोड़ा जा सकता है किंतु किसी अक्षर से नहीं अर्थात 1+1=2 होगा और 1+A= 1+A ही होगा, अर्थात ये जुड़े नहीं बल्कि चिपके हैं क्योंकि ये एक स्वभाव नहीं है एक विचार नहीं है।
इसीप्रकार हम अपने रिस्तों से, परिवार से, समाज से, धर्म से या देश से जुड़ते नहीं बल्कि चिपकते हैं। अगर हम इन सभी से जुड़ें तो हम कभी भी इनसे छूट ही नहीं सकते अलग हो ही नहीं सकते। जैसे एक बार कोई योगी या संत चाहे किसी भी धर्म का आस्तिक हो वह अपने आराध्य से जुड़ जाए तो फिर कभी छूटता नहीं है, बिल्कुल ऐसी ही क्रिया योग या जोड़ है परिवार, रिश्ते, समाज, देश और धर्म पर लागू होती है। जैसे हम अपने बच्चों से जुड़ने नहीं बल्कि चिपकते हैं यही कारण है कि बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते जाते है माता-पिता से चिपकने वाला वह गोंद खत्म होता जाता है और एक समय वो हमसे अलग हो जाते हैं और फिर हम उन कमियों को तलाशते रहते है जिनमें जुड़ने वाली समानता नहीं थी बल्कि चिपकने वाला गोंद था। वर्तमान समय में बिल्कुल यही स्थिति हर रिस्ते में बन चुकी है, फिर चाहे धार्मिक आस्था हो, देशभक्ति हो, ईमानदारी हो, मित्रता हो, या फिर पति पत्नी का रिश्ता। वास्तविक धरातल पर देखें तो पति पत्नी भी आपस में जुड़ते नहीं बल्कि चिपकते हैं, यही कारण है कि वर्तमान समय में तलाक की स्थितियां लगातार बढ़ती जा रही हैं, जबकि सनातन परंपरा तो विवाह को सात जन्मों का साथ मानती है किंतु केवल उसी स्थिति में जब हम विवाह के द्वारा जुड़ते हैं या योग करते हैं चिपकने वाली स्थिति में बिल्कुल भी नहीं।
जिस प्रकार 1+1=2 में से 1 और 1 को अलग नहीं किया जा सकता उसी प्रकार जुड़ने के बाद किसी को भी अलग किया ही नहीं जा सकता। हमको देखना होगा 1+1 करने के बाद जो 2 आया वही एक है अर्थात संख्या दो का एक है। इस संख्या 2 को पुनः 1 करने के लिए बाहर से अन्य कोई 1 लाना होगा अर्थात 2-1=1 करना होगा, तभी यह 1 होगा और जो 1 होगा उसमें भी बाहर वाला ही 1 होगा और जो शेष 1 होगा, वह 1+1 वाला ही 1 होगा जो पहले योग के द्वारा जुड़ चुका है क्योंकि इस संपूर्ण क्रिया में संख्या 1 का तीन बार प्रयोग हुआ है दो बार 1+1 करने के लिए और एक बार 1 घटाने के लिए।
अगर ऐसे ही देखें तो योग के द्वारा हमारी सभी प्रकार की असुरक्षा समाप्त हो जाती है। वर्तमान समय में चल रही धार्मिक कट्टरता और अति राष्ट्रवादिता का योग किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं करता क्योंकि ऐसा करने वाले लोग ना तो अपने धर्म से जुड़ते हैं और ना ही अपने देश से केवल चिपकने के लिए, किसी स्वार्थ वस, हर वक्त लालायित रहते हैं।