“ये हाय तन्हाई”
मैं ओढ़ता हूँ बिछाता हूँ जिसमें रहता हूँ ये हाय तन्हाई
पीछा नहीं छोड़ती मेरा दिल तोड़ती है , ये हाय तन्हाई
ना आगाज़-ए-ख़ुशी ना कोई राह मयस्सर करती है ये
अँधेरों में उलझाती है,बहुत झिंझोड़ती है,ये हाय तन्हाई
जाने किसका इंतज़ार करती है ये ,मुझसे विदा लेने को
दिल में आजिज़ सिहरन से बीज बोती है,ये हाय तन्हाई
आब-ए-चश्म मेरी आंखों के हर हालत में चश्मदीद हैं
मेरा ये दिल बदनसीब है जिसमें सोती है,ये हाय तन्हाई
कभी कभी कोई मिल भी जाता है, बनके हमदर्द मेरा
अख्ज़ बनकर ले जाती है उसे खोती है,ये हाय तन्हाई
यूँ तो राज़दार है बड़ी मेरे ज़र्रे ज़र्रे की ख़बर रखती है
बेशफ़क करती है लम्हें ,अहज़ान होती है ये हाय तन्हाई
मैं अपनी कसक किससे कहूँ किसे सुनाऊँ दास्तां मेरी
मुझें ज़िंदा तो रखती है पर ग़म में डुबोती है ये हाय तन्हाई
___अजय ‘अग्यार