” ये सब मन के ठाँव रे ” !!
रात न बदली , दिन ना बदले ,
बदल गये मन भाव रे !
झूमें , गाएँ , खुशी मनाएँ ,
ये सब मन के ठाँव रे !!
आगत के स्वागत में डूबे ,
उत्सव खूब मनाया है !
कल क्या होना बंद मुट्ठी में ,
गले आज लगाया है !
शहरों की है राह निराली ,
सोये सोये गाँव रे !!
समभाव यदि जान लिया तो ,
सुख दुख जैसे एक हैं !
धूप छाँह का खेल निराला ,
दिखे न पतली रेख है !
बरसातों में खुश तैराकर ,
हम कागज़ की नाव रे !!
बाँध पलों को करें संयोजन ,
मुस्कानों का खेल है !
पल पल जब बिखरे जाएं तो ,
हुआ गणित ज्यों फेल है !
टूटन , जकड़न , फिसलन सब कुछ ,
कहाँ ठहरते पाँव रे !!
किलकारी भर कर हँस लें हम ,
खुशहाली के गीत हों !
मतभेदों का दौर चले ना ,
ह्रदय बसी बस प्रीत हो !
नहीं पटखनी एक दूजे को ,
भूलें सारे दाँव रे !!
बृज व्यास