ये सफ़र मुश्किल भरा आसां नज़र आता नहीं
ग़ज़ल
ये सफ़र मुश्किल भरा आसां नज़र आता नहीं।
है बियाबां दूर तक मैदां नज़र आता नहीं।।
तुम तो पत्थर में भी अपना ढूढ़ लेते हो ख़ुदा।
क्यों तुम्हें इंसान में इंसां नज़र आता नहीं।।
सब्ज़ ऐनक अपनी आँखों पर चढ़ाये हो हुज़ुर।
इसलिए तो ये चमन वीरां नज़र आता नहीं।।
हिंदू,मुस्लिम, सिख या ईसाई नज़र आते तुम्हें ।
इनकी यक-जेहती में हिंदुस्तां नज़र आता नहीं।।
पैरहन मेरा फटा तो देखते हैं वो मगर।
बस उन्हें उनका बदन उरियां नज़र आता नहीं।।
अंधा टकरा कर कहे आता नहीं तुझको नज़र?
कह दिया मैने उसे – जी हां! नज़र आता नहीं।।
सारे दहशतगर्द ही आते नज़र उनको “अनीस” ।
आंदोलन में कोई दहकां नज़र आता नहीं।।
– अनीस शाह “अनीस”