ये संसार लगा प्यारा है!
सपने मेरे ढेरों-ढेर
गुड़िया संग करती मैं सैर
हाथ पकड़ते पापा मेरे
मम्मी साथ घूमती मेले
अपनी ये दुनिया अच्छी है
परियां भी लगती सच्ची हैं
सावन के झूले मन भाते
नृत्य मोर के बहुत सुहाते
टाफी दादी की झोली में
मीठी सीख मिले बोली में
मिट्ठू कितना लगा अनोखा
चिड़ियों से है सजा झरोखा
ये संसार लगा प्यारा है
अपना घर कितना न्यारा है
स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
रश्मि लहर
लखनऊ