ये संसार भी बेटियों से चला है
ये संसार भी बेटियों से चला है
अगर पास बेटी तो ये इक दुआ है
पराई क्यों बेटी को कहते हो लोगों
हमें प्यार सच्चा उन्हीं से मिला है
अगर कोख में मार डाली है बेटी
कोई पाप इससे न जग में बड़ा है
इधर कन्या पूजन उधर उनसे नफरत
ये कितना बड़ा सोच में फासला है
बड़ा सुख है औलाद का,बाँट इसको
यहाँ बेटियों बेटों में क्यों दिया है
नियम हम खुदा के अगर तोड़ते हैं
तो मिलती भी इसकी यहाँ पर सज़ा है
नहीं बेटियां गर सुरक्षित यहाँ पर
तो इसमें हमारी ही देखो खता है
न संस्कार अच्छे दे बच्चों को पाये
तभी मूल्यों का स्तर भी इतना गिरा है
नज़र ही नही अब नज़रिया भी बदलो
नहीं बोझ बेटी ये बस ‘अर्चना’ है
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद (उ प्र )