*ये शिक्षक*
लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री ?एक अबोध बालक ?अरुण अतृप्त
#विषय _ये शिक्षक
शिक्षा के हैं द्वीप जलाते
अथक परिश्रम पाठ पढ़ाते
संकल्पों की रोशनी में
जीवन को मुखरित कर जाते ।।
देव समान छवि है इनकी
शांत स्वभाव की मति है इनकी
रोष अखण्डित वैसे तो है
महिमा मंडन से हैं ये घबराते ।।
शिक्षा के आयाम स्थापित
प्रीत प्रेम के सहज स्थापक
कर में इनके दण्ड विराजे
मौका पड़ते ही तशरीफ़ सुजाते ।।
इनसे जिसने मार न खाई
सकल ज़िंदगी व्यर्थ गँवाई
इनके बोल पतासे से जैसे
फिर भी सबको न मिल पाते ।।
देश विदेश में रण नीति के
सुघड़ सुघड़ संग्राम सिखाते
बोल चाल से उलझी पहेली
बैठ ततपरता से ये सुलझाते ।।
इनको सब कोई याद है करता
जब जब वो है संकट में पड़ता
धन्य धन्य ये शिक्षक देवता
चरणों में हैं हम धोक लगाते ।।
तेरी आरती जो कोई गावे
वैतरणी के पार हो जावे
तुम सम कोऊ जन नही मिलता
घोटम घोट कढ़वी डाँट पिलाते ।।
शिक्षा के हैं द्वीप जलाते
अथक परिश्रम पाठ पढ़ाते
संकल्पों की रोशनी में
जीवन को मुखरित कर जाते ।।
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