“ये लोग”
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मुख में राम बगल में छुरी रखते है ये लोग
मिलाते है हाथ, दिल में दूरी रखते है ये लोग
किसी को दिखाते कोई,कोई और किसी को
चेहरे पे चढ़ा के चेहरा बड़े ठगते है ये लोग
मिलना इन्हे संभलकर ,जरा गौर से पढ़ना
कोई मतलब जरूर होगा, बड़े छलते है ये लोग
दिखावे में ना आना ,अपनी अकल लगाना
उंगली जरा सी दी, पोंचा पकड़ते है ये लोग
ना कभी सुधरे थे , ना सुधरेंगे कभी ये
आस्तीन के साँप जैसे डँसते है ये लोग
दुनिया अलग है अपनी, इनकी अलग है दुनिया
देख तरक्की किसी की बड़े जलते है ये लोग
मारे डूबा के जूता चासनी मे भर भरके
गिरगिट को मात देते रंग बदलते है ये लोग
हैं दिमाग के ये शातिर, तुम पप्पू जैसे भोले
कब काट दे ये पत्ता साजिशे रचते है ये लोग
पंगा न कभी लेना ,पढ़ना ना इनके पाले राणाजी
शकुनि के जैसे पासे चलते है ये लोग
©ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी”
सनावद (मध्यप्रदेश)