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20 Jan 2023 · 1 min read

ये लखनऊ है ज़नाब

कौन रहता है कहाँ,
वाकिफ हम सभी से।
हर गली की खबर मुझको,
इसी शहर का बाशिन्दा हूँ।

नफासत का शहर है लखनऊ,
यहां अदब से बात होती है।
पहले आप पहले आप में
गाड़ी छूट गयी थी कभी।

तीज त्यौहारों पर
पतंगें उड़ाते लोग।
घर में रहे कैसे मगर,
बाहर साफ पोशाक में रहते,

सो के उठते थोड़ा देर से
और रातें खुशनुमा हैं होती।
दावत के शौकीन हैं लोग
खाने में खिलाने में।

अदब तो इतना कि लोग
गाली भी आप कह के देगें।
सुबह तकरार होती,
शाम मैक़दे में मिलते हैं।

जूते पहनाता उसे गर कोई
तो शायद भाग भी जाता।
नफासत में कैद हो गया
फिरंगियों से वाज़िद अली।

खाना हो प्रकाश कुल्फी
जाओ कभी अमीनाबाद।
चौक की पिसी भांग
झुमोगे मस्ती में।

लखनऊ शहर में मिले,
रेवड़ी पेठा और गजक।
जाइए जनाब खाइये,
हलवा करांची का।

चिकन के कुर्ते में
आम भी शहज़ादा लगे।
कुर्ती साड़ी चुनर में,
ख़वातीन जमें खूब।

भूलभुलैया से आज तक
कोई न निकल सका।
जो भी यहां आया
उसे लखनऊ है भाया बहुत।

सतीश सृजन, लखनऊ.

Language: Hindi
194 Views
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