ये रिश्ते
ये रेत की दीवारों से दरकते रिश्ते,
एक पल में बन जाते हैं
और एक पल में बिखर जाते हैं।
कोई सपना देकर चला जाता है,
झूठा वादा करके चला जाता है।
और छोड़ जाता है वो सुनहरी यादें,
जो बलखाती नागिन सी बनकर,
डसती चली जाती हैं।
वो रेत के महल खड़े कर देते हैं
अपने पिघलते अहसासों से,
पर खुद ही तोड़ देते हैं,
उन आशियानों को
अपनी गर्म रेत-सी दलीलों से।
पल भर में दम भरी वो पाक मुहब्बत
नापाक हबस बन जाती है,
और फिर चकनाचूर हो जाता है,
वो दरकते काँच का बना घरोंदा।
हमारी तन्हाई की अब
कोई सीमा ही नहीँ,
मेरे अश्को को भी पी गया
वो मगरूर रेत का घर।
खुद तो टूट ही गया
मगर ले गया साथ अपने,
मेरी उम्मीदों को भी।
वजूद यूँ मिट गया हमारा,
उनके आने से आँगन में हमारें,
वो ले गए साथ अपने,
हमारी मुस्कान को भी।
आज सिसकती है हाय,
ये जवानी मुझ पर
बोझ बनकर,
मेरे मरने का भी सबब,
ले गए वो साथ अपने।
मेरी गुस्ताखियों को माफ करना,
अ मेरे खुदा,
की है जवानी में मैंने अनगणित नादानियाँ।
वो उड़ गया है हुस्न मेरा,
रेत की तरह बनकर।
सोनू हंस