“ये रिश्ते”
“ये रिश्ते”
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ये रिश्ता नाता कुछ स्वार्थ वश है ,
ये सब तो वास्ते इक मकसद है ,
हर रिश्ते एक दूसरे पर निर्भर हैं ,
इसमें छुपे सबके ख़ास मकसद हैं !!
हर रिश्ते के हैं एक-दूसरे से तार जुड़े….
किसी एक के बिना तो दूसरे हैं अधूरे !
हर किसी का एक – दूसरे से वास्ता है !
किसी की अनुपस्थिति में सपना अधूरा है !!
मैंने बहुत देख लिया रिश्तों का आधार !
ऐसा नहीं मिल सका मुझे कभी-कभार !
जिसमें नहीं रहा हो कोई स्वार्थ भरमार….
सदियों में लेता होगा कोई ऐसा अवतार !!
हम सब एक ही परिवार में रहते हैं !
एक दूसरे की ज़रूरतें पूरी करते हैं !
तब जाकर ये रिश्ते सतत् चलते हैं….
नहीं तो बीच रास्ते में ही टूट जाते हैं !!
कोई घटक अपना काम करना छोड़ दे !
तब क्या रिश्ते का स्वरूप वैसा ही रहेगा ?
नहीं, वह निश्चित रूप से ही बदल जाएगा !
रिश्ते का नाज़ुक डोर कमजोर पड़ने लगेगा !!
माना, ये रिश्ते ईश्वर की कृपा से ही बनते हैं !
जीवन की गाड़ी संग इसके स्वरूप बदलते हैं !
एक-दूसरे से बहुत ही अपेक्षाएं करने लगते हैं !
ये अपेक्षाएं रिश्तों की गाड़ी के ईंधन बन जाते हैं !!
तनिक स्वार्थ ना हो तो रिश्ते पल में टूट जाएंगे !
हर रिश्तेदार एक दूसरे को झट से भूल जाएंगे !
कुछ आशाएं जुड़ी होती हैं तभी ये बच पाता है….
किसी उम्मीद के बिना आगे कहाॅं ये चल पाता है??
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 07 नवंबर, 2021.
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