* ये राजनीति अब बन्द होनी चाहिए *
14.4.17 **** प्रातः 9.30
ये राजनीति अब बन्द होनी चाहिए
ये राजनीति अब दबंग होनी चाहिए
क्या दलित दलित चिल्लाते हो तुम
क्या दलित नही सर्व-समाज-जानो
छोड़ हित अपना कब साधा परहित
किसी सत्ताधारी ने अब तक बोलो
कभी राम तो कभी घनश्याम को
कभी बुद्ध तो कभी अन्य-अन्य को
बना आधार हुई है पल्लवित राजनीति
भूलते हो कथ्य आज बाबा के तुम
बनते हो बाप राजनीती के तुम
कहते हो शोषण किया है तुम्हारा
अच्छी बात है क्या वर्तमान है तुम्हारा
और होगा पता भविष्य क्या तुम्हारा
कुछ शर्म करो निठल्लों कुछ कर्म करो
जो दिया आज उस महामानव ने काज
सर्व समाज का है अधिकार उसको तो
बन्द कमरे में ना करो और सोचो आज
ये कूपमंडूकता अब कब तक चलेगी
कहते हो उस महामानव ने क्या किया
पढ़ो पढ़ो
उस महामानव को यूं मन से ना गढ़ो
चौधराहट चाहते हो
तो खोने से यूं मन में ना डरो
आज
मनाया दिवस भूल गये कल दिवस
भूलना जो फ़ितरत है हमारी क्योंकि
साल में आते तीन सौ पैंसठ दिवस
एक को मनाते भूल दूसरे को जाते
ऐसे आते है कई जन्मदिवस अवस
ऐसा क्यों करते हो उस महामानव
को यूं क्यों छलते-छलते चलते हो
हम हिंदुस्तानी हैं
नक़ल बहुत अच्छी कर लेते हैं पर
पश्चिम ने माना
इसीलिए शायद ग्रहण हम कर लेतें हैं वरना
हम क्यों माने हम क्यों जाने उसे
जिसकी प्रतिमाओं को
बडे प्रेम से खण्डित हम कर देते हैं
क्या सवर्ण क्या अवर्ण सभी अपनी
अपनी कर्म-करनी का फल लेते हैं
बन्द करो राजनीति परहित-चिंतक तुम
क्यों अब औरों के लिए मरते हो तुम
कह भीम-भीम जय भीम भीम की सेना
क्यों फिर अपने अपनों से डरते हो तुम
जो
चिल्लाता आया है अब तक कब तक
उसने अपने अपनों का है साथ निभाया
हित-साधन किया ना अपना तब तक
जय भीम भीम जय भीम चिल्लाया है
अवसर पाकर बिक हाथ पराये
ख़ुद-ख़ुदा तनिक नहीं लजाया है
गैरों से कहते हैं शोषक क्या तुमने
अपनों का बेवज़ह खून नहीं बहाया है
बन्द करो दोगलापन दोगली राजनीति अब भीम
सुन-सुन जय भीम घोष खुद शर्माया है
ये राजनीति अब बन्द होनी चाहिए
ये राजनीति अब दबंग होनी चाहिए ।।
?मधुप बैरागी