ये भी’ कोई ज़िंदगी है,
ये भी’ कोई ज़िंदगी है,
आदमी जिसमें दुखी है.
आदमी तो आदमी में ।
ढूंढता कोई कमी है ।।
साथ माँगा दोस्ती में ।
टूटी तब उम्मीदगी है।.
रात दिन साथी बदलते।
ये मुहब्बत मौसमी है ।।
ये नमस्ते आजकल की।
हाय हेल्लो में हुई है ।।
आज हर इक सभ्यता भी
क्षीण होती जा रही है।।
है कहाँ पहले सा’ रिश्ता।
गाँठ रिश्तों की खुली है ।।
** आलोक मित्तल उदित **
** रायपुर **