ये बिन मौसम की बरसात…
ये बिन मौसम की बरसात,
अजब -गज़ब है इसकी शान ।
बूँद-बूँद यूँ टपक रही है,
लिए संग हवा और ओलों की माँद ।।
इधर-उधर ये कूकर देखो,
पूँछ दवाये वो छुपने को भागें ।
निज -पशुओं को चौबारे में,
धनियाँ करे देखभाल सदा ।।
है किसान को फ़िक्र फ़सल की,
बैठा माथै पै टेक हथेलियाँ ।
गुँजन छप-छप गलियारों में,
खेल रही संग सहेलियाँ ।।
एक को है उम्मीद बहुत,
दूजे को दुःख बारिश सताय रहा ।
इक देख के सूखी फसल रो रहा,
द्विजः रोता घनघोर घटाओं से ।।
रहती हैं उम्मीदें प्यासे पपीहे को,
जब घिर बादल वो आते हैं ।
बलिया घास भी सूखे मैदानों की,
मस्ती में तब लह लहलहाती है ।।
उम्मीद भी सूखे तालाबों को,
कुछ ऐसे ही रहती होगी ।
“आघात” ये बारिश न जाने कितने,
सूखे दिलों को भिगोती होगी ।।
आर एस बौद्ध “आघात”
8475001921