ये प्रातः तुम्हें सजानी है
ओ भारत की भावी नारी !
बहुत सो चुकी अब तो जागो ,
ये प्रातः तुम्हें सजानी है ।
मत बोझ बनो तुम परिवारों पर
सिर्फ भार बनो मत तुम धरती पर
सीखो मत सिर्फ बंधन में रहना,
लक्ष्य बना लो कुछ करके है दिखलाना
इस युग को प्रतीक्षा सिर्फ तुम्हारी है ।
ओ भारत की भावी नारी …..
क्यों सहती हो कष्टों को तुम ,
क्या सहना ही तुम्हारा जीवन है
कम करो सहनशीलता अपनी ,
भावना लाओ मन में कुछ करने की ,
इस नवयुग को प्रतीक्षा सिर्फ तुम्हारी है
ओ भारत की भावी नारी ….
बहुत रो रही हैे यह भारत माँ तुम्हारी
भ्रष्ट हो रही हैं इसकी संताने सारी
सीता और जीजाबाई जैसी माँ
एक बार फिर बन जाओ तुम
लव कुश और वीर शिवा सी
इनकी सीख सिखाओ तुम ।
इस युग को प्रतीक्षा सिर्फ तुम्हारी है ।
ओ भारत की भावी नारी !
बहुत सो चुकी अब तो जागो
ये प्रातः तुम्हें सजानी है ।
ये प्रातः तुम्हें सजानी है ।
डॉ रीता