ये पीड़ित कौन है?
ये जो दौर है न
मेरे लिए
घातक है
लेकिन क्या
#मेरे_लिए
या #इसके_लिए
या फिर
किसके लिए
कहते हैं
जो घट माही है
वो कोई और है
वो हर दर्द औ’
दुख से परे है
पर कष्ट तो है न
चाहे कोई भी हो
तड़प तो उठती है न
कराह तो उठती है न
मानो निर्दयता से
कोई निचोड़ रहा है मुझे
#मुझे?
कौन मुझे?
पर #मैं मैं तो हूँ ही नहीं
जब वो
सुरक्षित है
तो इस यातना में कौन है
प्रताड़ना में कौन है?
जीव अलग है
ये देह अलग है
तो पीडि़त कौन है?
इस पीडा़ की अनुभूति किसे है
इन प्रश्नों के लिए
जाना होगा मुझे
उस पार
फिर #मुझे?
मैं मैं नहीं हूँ
तो क्या हूँ
रे हंस!
परवाह न कर
अब समय निकट है
देह से अदेह होने का
अ्ज्ञात से ज्ञात होने का
सँभाल कर रखना
इन प्रश्नों को
बूझना तो है ही
कि ये पीड़ित
कौन है. . . . ?
सोनू हंस