ये पहाड़ कायम है रहते ।
ये पहाड़ कायम है रहते,
अपने स्थान पर दृढ़ स्थिर रहते,
और ये झरने बहते रहते,
यों ही सामंजस्य बना के रखते,
अहंकार को गिरा कर रहते,
अस्तित्व अपना बना कर रखते,
ये पहाड़ कायम है रहते।
डट कर देखो खड़े रहते,
प्रहरी बन रक्षा भी करते,
जंगल को भी साधे रहते,
जीव-जंतु भी घर है बसाते,
मस्तक अपना ऊँचा कर ,
ये पहाड़ कायम है रहते।
कल-कल नदिया भी है बहती,
सदियों से यह कहती रहती,
मित्रता उनकी सच्ची है वैसी,
हर दरारों से मिलती हुई निकलती,
बोझिल लगने पर बिल्क़ुल न बिखरता,
ये पहाड़ कायम है रहते ।
दूूर-दूर तक फैले है रहते,
इस धरा का संतुलन है बनते,
प्रकृति का कार्य है करते,
एक महान दायित्व है निभाते,
अस्थिर मन से साधना है करते,
ये पहाड़ कायम है रहते।
रचनाकार-
✍🏼 बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर ।