ये निम खामोशी तुम्हारी ( पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल जी की याद में )
कई सालों से खामोश थे तुम ,
और तुम्हारी कलम भी खामोश थी।
ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहे थे ,
मगर यह जंग तो आख़िरी थी ।
फर्क तुमने कथनी/ करनी में ना किया,
मौत और काल से जितने की जो ठानी थी ।
साहित्य के महारथी /राजनीति के महागुरु ,
तुम्हारी महानता के समक्ष मौत नगण्य थी ।
ओजस्वी वाणी और सिंह सा बाहू-बल ,
सारी दुनिया तुम्हारा लोहा मानती थी।
दिल में अथाह प्रेम और सोहाद्र ऐसा ,
शत्रु कोई था नहीं,मित्रता सभी से थी।
हे जन नायक ,जन कवि , जन नेता!,
सारे देश की मुहोबत सदा तुम्हारे साथ थी।
सच्चाई, देशप्रेम ,सादगी और सद चरित्रता,
तुम्हारे पवित्र व्यक्तित्व की पहचान थी ।
यूँ तो खामोश थे तुम कई सालों से मगर ,
इस निम् ख़ामोशी की हमें उम्मीद ना थी ।
तुम्हारी सलामती की दुआ करते रहे हम सदा ,
हम क्या जाने भला, ईश्वर की क्या मर्ज़ी थी।
हम तो तुम्हारे छत्र -छाया में रहे बेखबर ,
यह बिजली हमपर ही क्यों आखिर गिरनी थी।
अब तो जीना होगा तुम्हारे बगैर , सो जी लेंगे ,पूरा करेंगे देश की तस्वीर,जिसकी कल्पना तुमने की ।
यह भरोसा करकेके तुम मरके भी हो हमारे साथ,
सदा उन राहों पर चलेंगे ,जो राह तुमने दिखाई थी।