ये ना पूछो
हर गम को छुपा लेता हूं
हर दुख-दर्द सह लेता हूं
कोई ये ना पूछो ,
ये तकनीक कहां से लाता हूं
बस नदी को देखकर
उसके आंचल में खेल कर
बस हिम्मत वहां से लाता हूं
पीता हूं मैं खुद गम के घूट को
झेलता हूं मैं हर दुःख को
दुनिया जब भी ये राज पूछतीं हैं
मैं हसकर उस बूढ़ी मां को देख लेता हूं
जिसके बेटे छोड़ गए हैं इस उम्र में
फिर भी ओ आंखें उसको ढूंढ़ती हैं
बस देखता हूं उस दरिया को
जो खुद में हर तकलीफ सह लेते हैं
मगर उफ़ तक ना करतें हैं
जो हर कांटों को फ़ूल बनाना जानते हैं
अपने-अपनो के लिए हर हद तक जातें हैं
ये ना पूछो ,हम कहां से आतें हैं
हम भी वहां से आतें हैं
जहां से आप सभी आते-जाते हैं।।